Wednesday, April 28, 2010

मेरे यादगार शेर...

अभी जागा हूँ मेरे दोस्त कल तलक सोता रहा ,
यही मयकदा है जहां मैं जवानी को खोता रहा ,
सबका ख़याल है किमैं शौक से पीता रहा ,
पर असल में '' गाफिल '' गम को नशे में भिगोता रहा।

तुझसे अच्छी तो तस्वीर है तेरी ,
ये नजर तो नहीं चुराती है ,
चाहे कहीं भी मैं रहूँ ,
ये मगर नहीं शर्माती है....

Monday, March 29, 2010

संचयित किया है

किताबों के पन्ने पलट के सोचता हूँ
यु ही पलट जाये ज़िन्दगी तो क्या बात है।
ख़्वाबों मैं जो रोज़ मिलता है,
वो हकीकत मैं आये तो क्या बात है।
कुछ मतलब के लिए ढूंढ़ते है सब मुझको,
बिन मतलब जो आये तो क्या बात है।
कत्ल कर के तो सब ले जायेंगे दिल मेरा,
कोई बातों से ले जाये तो क्या बात है।
जो शरीफों की सराफत मैं बात न हो,
एक शराबी कह जाये तो क्या बात है।
अपने रहने तक तो ख़ुशी दुगा सब को,
जो किसी को मेरी मौत पर ख़ुशी मिल जाये तो क्या बात है ।

अज्ञात शायर कि नज्म ,,,,

Thursday, September 24, 2009

यादनामा मेरा भले अफसाना कहो तुम ,,,,,,,,

तेरी जुल्फों के साये में खोकर के सो जाना याद आता है ,!
वो तुझसे रूठकर फ़िर मेरा तुझको मनाना याद आता है ,!
नही अब भूल पाता हूँ उन लम्हा ऐ जज्बातों को ,
तेरी बाहों में सबकुछ भूल जाना याद आता है ,!!

तू हंसती थी मैं हँसता था लेकिन जमाना रोता था ,
हंसा जब जब ज़माना तब तेरा आंसू बहाना याद आता है ,!
तू न थी करीब तो मुझे नींद नही आती थी ,
तेरा साथ पाके बातो बातो में राते बिताना याद आता है ,!!

मयखाने में रात गुजर जाती थी नशा जाने क्यो नही होता था ,
तेरी मदहोश आंखों में मेरा वो डूब जाना याद आता है ,!
कितना इन्तजार किया था कैसे काटे थे बिन तेरे वो दिन ,
बहार बनके आए थे तूफ़ान बनके जाना याद आता है ,!!

न जाने क्यों अब मुझे हँसना भी नही आता ,
मुझे भूल जाओ कहकर तेरा मुझको रुलाना याद आता है ,!
शराब न होती तो तेरी कसम मर गया होता मैं ,
क्या करू मुझको तेरा सपनो में आना याद आता है,!!

बेबस न था मगर तेरी मर्जी के आगे झुक गया था ,
नही किया शिकवा मगर तेरा मुझको कसमे खिलाना याद आता है ,!
ना हुआ है ,ना होगा ,मेरे जैसा आशिक मगर सुन ले ,
तेरा मुझ को फकत ''गाफिल'' बनाना याद आता है ,!!

तेरी जुल्फों के साये में खोकर के सो जाना याद आता है ,!
वो तुझसे रूठकर फ़िर मेरा तुझको मनाना याद आता है ,!


मेरी कलम कभी झूठ नही बोलती यारो ......

Tuesday, September 1, 2009

हकीकत की दुनिया में मुसीबत ...

माटीका पुतला तू है और उसी का फूल है ,
जिंदगानी तो खुशी है और ये गम धूल है ,
मत डगमगाना ये थपेडे कल नही रह जायेंगे ,
जोश को काबू में रख, ये तेरे कमाए शूल है ,
खैर है तुझको खुदा ने नेमते बख्शी कई ,
''गाफिल'' तेरा गम ही जुदा है ये भी तेरी भूल है ,
जिन्दगी में हर किसी को सबकुछ नही मिलता कभी ,
हंस के जी ले चार दिन ये जिंदगी का मूल है .....


chinta, छोड़ चिंतन कर मेरे दोस्त,,

संचय किया है ...

एक परिंदे का दर्द भरा अफसाना था ,
टूटे थे पर फ़िर भी उड़ते जाना था ,
तूफ़ान तो झेल गया लेकिन ये हुआ अफ़सोस ,
वही दाल टूटी जिस पर उसका आशियाना था ...

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खून के सागर उडेलता हूँ मैं ,
दर्द और तीर सीने पे झेलता हूँ मैं ,
लोग समझते है शेर लिखता हूँ मैं ,
पर हकीकत में अपने ज़ख्मों से खेलता हूँ मैं ...

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Thursday, August 27, 2009

नजर को नजर,,,,

उस नजर को मेरी नजर का सलाम है ,
जिस नजर को नजर मेरा ये कलाम है ,
हर नजर को इस नजर से नही देखता ''गाफिल'' ,
मेरी नजर तो बस उसकी एक नजर की गुलाम है ,
इस नजर की तलाश में एक अरसा गुजार दिया मैंने ,
मसला नजर का है लेकिन क्यो वो नजर गुमनाम है ,
कभी मेरी नजरे गिला नही करती है ,
एक नजर को आख़िर लोग क्यो करते बदनाम है ...

Friday, August 21, 2009

मुझे लिखने का बहुत शौक था बचपन से
इसलिए इसको ही मंजिल बना लिया मैंने
सबकुछ तो किसी को नहीं मिलता जहाँ में ''गाफिल ''
फकत दिल का सुकून पा लिया मैंने॥